Saturday, November 20, 2010

हाड़ मांस का पुतला

ऐश्वर्या कैसे एक वर्ष की हो गयी कुछ पता ही नहीं लगा
इन बारह महीनो के अनुभव के आधार मेरे जीवन के पहले साल को व्यक्त करने की कोशिश

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मै जग में जब आया
अपने साथ क्या लाया होगा?
हाड़ मांस का पुतला बस
और अकल जरा न पाया होगा!

मात्रु-गर्भ में नौ महीने
निश्चिन्ता से बिताया होगा!
कभी पलट कभी लात मार कर
माँ को बहुत सताया होगा!

प्रसव-पीड़ा की घड़ी में बेशक
माँ को बहुत रुलाया होगा!
ऑंखें भींच, मुट्ठी बाँध रो
आगमन-बिगुल बजाया होगा!

माँ ने अपने वक्ष लगा के
दुग्धपान मुझे सिखाया होगा!
दिन-रात सीने से लगा के
लोरी गान सुनाया होगा!

पिता ने अपने गले लगा के
आँगन गली घुमाया होगा!
दादा-दादी और सब लोगो ने
जी भर स्नेह लुटाया होगा!

पवन मल-मूत्र, थूक-लाड़ से मैंने
परिजनों को बहुत भिंगाया होगा!
जब मर्जी हो मैं खुद सोया
पर सबको हर रात जगाया होगा!

इसी लिए शायद सबने मुझको
सुई-टिका लगवाया होगा!
बदले में ताप और दर्द से
मैंने सबका चैन चुराया होगा!

तीन माह जब होने को होंगे
पहली किलकारी लगायी होगी!
उसी माह में लगता है
पहली बार बुदबुदाया होगा!

पांच माह में शायद
पहली करवट बदली होगी!
सात माह में चल घुटनों पर
सबको नाच नचाया होगा!

नवमे माह में दांत काट सभीको
नानी याद दिलाया होगा!
१२ माह में भाग भाग कर
घर को सर पे उठाया होगा!

मै जग में जब आया
अपने साथ क्या लाया होगा?
हाड़ मांस का पुतला बस
और अकल जरा न पाया होगा!

- अमिताभ रंजन झा

Poems dedicated to mother:

माँ मुझको कलेजे से लगाये रखना

माँ तू याद आती है

आंतकवादी की माँ

4 comments:

  1. bahoot hi sundar rup se apne had mans ka putla apne shabdo me ukera hai ....jo bhai,bahan apne maa baap ko pyar nahi karte is kavita ko padhkar jaroor karenge....

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  2. Your blogposts make a wonderful reading. Keep writing. Keep sharing.

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